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कुछ खामोश से अरमान

सफर ख्वाबों का........
सफर ख्वाबों का........
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बंद किवाड़ो के पीछे से

कुछ खामोश से अरमान मचलते  है
कुण्डी लगे खुले आसमानों में
पर फैलाने को
ख्वाब तरसते  है
कतरे कतरे बुने है ख्वाब
मगर ख्वाहिशो के इस जंगल में
चिंदी चिंदी वो उधड़ते है
सजते है फिर वो नयी
दुल्हन कि तरह
इंतजार में किसी के
हर आहट पर चौंकते है
फिर चुपके से किसी कोने में जा
दुबकते है सहमते है सिसकते है
बंद किवाड़ो के पीछे
कुछ खामोश  से अरमान मचलते  है
कभी नए फंदों में बुनकर
आँखों में झिलमिल करते है
कभी आजाद परिंदे कि तरह
नील  गगन में उड़ते है
कभी किसी बादल में बैठ
ख़ामोशी का मंजर तकते है
और तेज झोंको के संग
आवारा से वो फिरते हैं
बंद किवाड़ो के पीछे से
कुछ खामोश  से अरमान मचलते  है
कभी किसी मासूम बच्चे से हो ख़्वाब मेरे
अजब अठखेली करते है
दौड़ते है वो बेतहाशा
और कुछ देर थम के
सांसो को मेरी बोझल करते है
बंद किवाड़ो के पीछे से
कुछ खामोश से अरमान मचलते  है

फ्त्य्य्म्क्क


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